अनमना अनमना सा आज लगे तोः क्यों लगे.....
हर मंजर हर दुआ उलझा हुआ लगे तोः क्यों लगे
मुद्दत हो गयी सुबह हुए तोः॥
आज मगर फिर रात बाकि सा लगे तोः क्यों लगे??
तेरी आंखों से पढ़ा था कभी कुछ अनसुने से दास्तान ..
तेरे मुस्कुराहटों पे वारा था अपने अनगिनत से अरमान ...
यूँ तो था मेरा दिन तेरे ही धडकनों के आसपास...
गुनगुनाते थे वोह लम्हे महकता था मेरा हर एक एहसास...
आज इस मोड़ पे आके हर धड़कन बदनसीब सा लगे तोह क्यों लगे..
हरदम हर लम्हा कुछ सुलझा तोह कुछ उलझा सा लगे तोह क्यों लगे...
मुद्दत हो गई सुबह हुए तोह....
आज मगर फ़िर रात बाकि सा लगे तोह क्यों लगे?
Amazing Poetry.Honest and simple.
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