Thursday, July 16, 2009

मेरी प्यारी बेटी अनमना तुम इस कविता कि बूँद की तरह एक संघर्ष पूर्ण दौर से गुजर रही हों ...ये कविता मेरी नहीं है , महाकवि हरिऔध की है ॥ क्या यह संयोग है कि उन्होंने अपनी बूँद को भी अनमनी कहा है...

"ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेथी
अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ीसोचने फिर-
फिर यही जी में लगी,आह !
क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?

देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?
या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,
चू पडूँगी या कमल के फूल में ?

बह गयी उस काल एक ऐसी हवा
वह समुन्दर ओर आई अनमनी
सुन्दर सीप का मुँह था खुला
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।

लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर । "

Tuesday, May 5, 2009

चल आ...जी ले जिन्दगी!

चल आ...जी ले जिन्दगी!कतरा कतरा टुकडा टुकडा ऐसे ही सही....चल आ...जी ले जिन्दगी!अमृत तो इस पल मै है...इन हवाओं मै घुली इस चांदनी मै है बंद आँखों से तेरी साँसों से महसूस कर ले....आ..जी ले ...जी ले जिन्दगी!तू ही तो है तेरा अपना सुकून ...तेरा अपना जुनून तेरी अपनी मुस्कराहट तू खुद ही तो है...बस पहचान ले खुद को कर ले बन्देगी आ ज़रा जी ले जिन्दगी...जी ले जिन्दगी...!!

Tuesday, April 7, 2009

कही अनकही...

मेरी याद कभी कभी खामोशी मै तुझे गुदगुदाती तोः होगी...
मेरी खुशबू कभी कभी तेरी तन्हाई को महका जाती तोः होगी

तेरी यादोंकी रह गुजर से कभी जो हम गुजर जाते चुपके से...
एक मीठी सी चुभन तेरे दिल को भी तोः तडपा जाती होगी...

हम तेरे अपने नहीं यह हमने भी मान लिया...
हम तेरे सपने नहीं यह हमने भी जान लिया...

मगर फिर भी कभी कभी जो हम रोते होंगे चुपके से
एक कतरा आंशु सायद तेरी पलकों को भी तोः भिगो जाती होगी...!!

...

वो एक खुशबू आती थी और मै बेहेकती जाती थी...एक रेशमी सी माया थी और मै तकती जाती थी...जब तेरी गली आया...सच तभी नज़र आया...मुझ मै वो खुसबू थी जिस से तुने मिलवाया....!!

जाने क्या बात है...

जाने क्या बात है...
तू जो मेरे साथ है...
चाहत के आंगन में जैसे पहली मुलाकात है॥
शर्माती निगाहें .....

नटखट सा आँचल...
थिरकते लबों पे...
जैसे खामोश सा हलचल...

किरणों से नहाई यह महकी सी शाम...
लिए जा रही है बस मोहब्बत का नाम...
नम सी पलकों पे भीगी सी उलझन...
कुछ और बात है कुछ और पागलपन....

बदला हुआ सा यह शमा...
बदले बदले से सपने...
बदले हसरतों की गोद में बदली हुई सी यह रात है...

जाने क्या बात है...
तू जो मेरे साथ है...!!

अनमना ...

अनमना अनमना सा आज लगे तोः क्यों लगे.....
हर मंजर हर दुआ उलझा हुआ लगे तोः क्यों लगे
मुद्दत हो गयी सुबह हुए तोः॥
आज मगर फिर रात बाकि सा लगे तोः क्यों लगे??

तेरी आंखों से पढ़ा था कभी कुछ अनसुने से दास्तान ..
तेरे मुस्कुराहटों पे वारा था अपने अनगिनत से अरमान ...
यूँ तो था मेरा दिन तेरे ही धडकनों के आसपास...
गुनगुनाते थे वोह लम्हे महकता था मेरा हर एक एहसास...

आज इस मोड़ पे आके हर धड़कन बदनसीब सा लगे तोह क्यों लगे..
हरदम हर लम्हा कुछ सुलझा तोह कुछ उलझा सा लगे तोह क्यों लगे...
मुद्दत हो गई सुबह हुए तोह....
आज मगर फ़िर रात बाकि सा लगे तोह क्यों लगे?