Tuesday, April 7, 2009

कही अनकही...

मेरी याद कभी कभी खामोशी मै तुझे गुदगुदाती तोः होगी...
मेरी खुशबू कभी कभी तेरी तन्हाई को महका जाती तोः होगी

तेरी यादोंकी रह गुजर से कभी जो हम गुजर जाते चुपके से...
एक मीठी सी चुभन तेरे दिल को भी तोः तडपा जाती होगी...

हम तेरे अपने नहीं यह हमने भी मान लिया...
हम तेरे सपने नहीं यह हमने भी जान लिया...

मगर फिर भी कभी कभी जो हम रोते होंगे चुपके से
एक कतरा आंशु सायद तेरी पलकों को भी तोः भिगो जाती होगी...!!

3 comments:

  1. भावनाओं की बयार को शब्दों में गूँथ कर अच्छी प्रस्तुति है.
    बधाई और शुभकामना

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